By Santosh Salve
March 19, 2022
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राजस्थान के राजसमंद नगर समीप 1660 के दशक में मेवाड़ के राणा राज सिंह प्रथम ने इस झील का निर्माण करवाया था. उदयपुर से लगभग 66 किलोमीटर की दूरी पर यह झील स्थित है.
यह झील 2.82 किलोमीटर चौड़ी, लगभग 6.4 किलोमीटर लंबी और 18 फीट गहरी है. माना जाता है कि यह झील भारत की दूसरी सबसे बड़ी कृत्रिम झील है.
सूर्यास्त के समय सूरज की रोशनी इस झील पर पड़ते ही यह झील बड़ी अनोखी दिखाई देती है. झील के दक्षिण में सफेद संगमरमर से बना विशाल तटबंध बड़ा ही आकर्षक दिखता है.
गोमती, केलवा तथा ताली इन तीन नदियों पर बनाए बांध के कारण झील का निर्माण किया हुआ है. झील के किनारों की सीढ़ियों को हर तरफ से गिरने पर इनका योग 9 ही आता है, इसलिए इसे नौचौकी भी कहते हैं.
इस झील के किनारे घेवर माता का मंदिर भी है. 1660 के दशक में सूखा पड़ने पर महाराणा राज सिंह ने इस झील का निर्माण करवाया था.
इसी झील पर 25 काले संगमरमर की बड़ी चट्टानों पर संस्कृत में मेवाड़ का पूरा इतिहास उत्कीर्ण किया गया है. संसार की इस सबसे बड़ी प्रशस्ति को 'राजप्रशस्ति' के नाम से जाना जाता है.
लेखक रणछोड़ भट्ट तैलंग के 'अमरकाव्य वंशावली' नाम के पुस्तक पर आधारित यह राजप्रशस्ति है. कहते हैं कि इस झील पर पाल का निर्माण लगभग पूरे 14 वर्ष में किया गया था.
कहां जाता है कि उस वक्त इस झील को बनाने में लगभग 40 लाख रुपए की लागत आई थी. अंग्रेजों के जमाने में बनाई हुई एक छोटी हवाई पट्टी भी यहां है. तब यहां पर हवाई जहाज भी उतरते थे.
सुबह 7:00 बजे से शाम 6:00 बजे तक खुले रहने वाले इस झील के आसपास के कई सारे मंदिर एवं पर्यटनस्थल देखने लायक है. झील के आसपास नाश्ता या खाने का होटल मौजूद नहीं है.
हवाई मार्ग या रेल मार्ग से आने के लिए उदयपुर यह सबसे पास का स्थान लगभग 66 किलोमीटर दूरी पर है. साथ ही राजस्थान के बड़े-बड़े शहरों से तथा दिल्ली से भी आप यहां सड़क मार्ग से आ सकते हैं.
अक्टूबर से लेकर फरवरी तक आप इस झील पर घूमने के लिए आ सकते है. इस समय राजस्थान में मौसम अच्छा और ठंडा होता है. राजस्थान में गर्मी के मौसम में यात्रा ना करें तो ही बेहतर है.
राजस्थान की इस बेहतरीन राजसमंद झील पर घूमने के लिए कम से कम एक बार जरूर जाएं. यहां का नजारा आपके मन को जरूर प्रफुल्लित कर देगा.
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